Dus Pratinidhi Kahaniyan : Tejendra Sharma / दस प्रतिनिधि कहानियां: तेजेन्द्र शर्मा
आईना पूछता है ज़िंदगी का क्या किया... पहली कहानी 1980 में ‘नवभारत टाइम्स ’ के साहित्यिक परिशिष्ट में प्रकाशित हुई थी। उससे पहले अंग्रेज़ी में साहित्यिक आलोचना की दो पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी थीं। हिंदी में लिखना भी दिवंगत पत्नी इन्दु की वजह से ही शुरू हुआ था। न वह मुंबई में पी.एच.डी. शुरू करती और न मैं हिंदी के उपन्यास पढ़ता और न ही मेरी रुचि हिंदी साहित्य में पैदा होती। इन्दु के माध्यम से मुझे 1975 से 1985 के बीच प्रकाशित उपन्यासों को जानने का अवसर मिला। एक लंबी सूची थी – अमृतलाल नागर, हजारीप्रसाद द्विवेदी, भीष्म साहनी, जगदीश चन्द्र, नरेन्द्र कोहली, मृदुला गर्ग, मन्नू भंडारी, मनोहर श्याम जोशी, हिमांशु जोशी, रामदरश मिश्र एवं शैलेश मटियानी जैसे उपन्यासकारों की रचनाएं पढ़ीं। सोचा कि ऐसा तो मैं भी सहज रूप से लिख लूंगा। मेरे पिता भी उर्दू में उपन्यास, कहानी, कविता, ग़ज़लें लिखा करते थे... उन्हें प्रकाशन का सुख नहीं मिल पाया। यानी लेखन विरासत में मिला था और अब मैं अंग्रेज़ी से हिंदी की ओर बढ़ रहा था। आदमी जब लिखता है तो सपने देखना शुरू कर देता है। उसे महसूस होने लगता है कि वह एक विश...