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स्वप्न, सच भी होते हैं
विगत 54 वर्षों से किताबघर प्रकाशन, नई दिल्ली ने हिंदी में विभिन्न विधाओं पर हजारों पुस्तकों का प्रकाशन किया है। साहित्यिक पुस्तकों के प्रकाशन में अनिवार्य हस्तक्षेप करने का यह प्रयास वर्ष 1968 में पंडित जगतराम आर्य के हाथों शुरू किया गया। पुस्तकों की पृष्ठभूमि उनकी आजीविका से संबंधित तो थी ही, साथ ही व्यक्तित्व निर्माण से भी संबंधित थी। सेवानिवृत्ति की आयु के बाद भी शब्द की छआ ने उन्हें एक नव-ऊर्जा प्रदान की और किताबघर प्रकाशन की संकल्पना को मूर्त रूप दिया गया।
संस्थापक यह जानते थे कि दुनिया को बंधुत्व सौंपने की दिशा मनुष्य के चरित्र-निर्माण की ओर ही जाती है, इसलिए सीमित संसाधनों के बावजूद, जो भी संभव हुआ—मुद्रित शब्दों के माध्यम से उसे विशाल पाठक वर्ग के सम्मुख वे सदाश्यता से प्रस्तुत करते चले गए। बढ़ती आयु में, सुपुत्रों के हाथों में अधूरा काम थमाकर आर्यजी ने अपनी कर्मलीला को विराम दिया । तब तक सैकड़ों पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी थीं, साथ ही स्थापना हो गई थी, प्रकाशन की मासिक गृह-पत्रिका 'समकालीन साहित्य समाचार' की।
इस पत्रिका के प्रकाशन के पीछे एक दूरदृष्टि थी। पत्रिका में समसामयिक साहित्यिक वार्ताओं, टिप्पणियों तथा नई-पुरानी पुस्तकों के अंश तथा प्रकाशित/प्रकाश्य पुस्तकों की सूचनाओं के साथ-साथ, समकालीन साहित्यिक समाचारों का विशेष योगदान लगाता रहता आया है। एकदम तटस्थ एवं निष्पक्ष भाव से प्रस्तुत की गई सामग्री की वजह से पत्रिका पाठकों की मासिक अनिवार्यता बन गई है।
अगस्त, 1993 में आर्यजी का देहावसान हो गया। उनकी स्मृति में एक वार्षिक साहित्यिक सम्मान प्रकाशन के संचालकों द्वारा स्थापित करने का निर्णय लिया गया। संयोगवश वह वर्ष प्रकाशन की स्थापना का रजत जयंती वर्ष भी था तथा उसी उपलक्ष्य में ‘पच्चीस श्रेष्ठ कहानियाँ’ (दो खंडों में) का लोकार्पण एवं हिंदी कहानी पर संगोष्ठी का आयोजन भी तब किया गया था।
आर्यजी का जन्मदिवस 16 दिसंबर को होता है, अतः यह निर्णय किया गया कि प्रतिवर्ष उनके जन्मदिवस पर ‘आर्य स्मृति साहित्य सम्मान’ का आयोजन सम्मान समारोह के रूप में किया जाए। सम्मान की नीति-नियमावली को उदार एवं स्वतंत्र रखते हुए इसमें प्रतिवर्ष अपेक्षित परिवर्तन-संशोधन करने की संभावना भी छोड़ी गई है। अभी तक बड़ी संख्या में लेखक इस विधि के चलते सम्मानित हो चुके हैं तथा दो दर्जन से अधिक कृतियाँ भी प्रकाशित हो चुकी हैं। देश के लब्धप्रतिष्ठ साहित्यकार-पत्रकार एवं नाट्य व्यक्तित्व इस सम्मान-प्रक्रिया से जुड़ते रहे हैं। विशेषतः राजधानी क्षेत्र के विद्वान् शब्दकर्मी प्रतिवर्ष 16 दिसंबर की तिथि को अपनी स्मृति में सदा सँजोकर रखते हैं।
किताबघर प्रकाशन मात्र एक पुस्तक प्रकाशन संस्थान नहीं है, बल्कि व्यापक लक्ष्य की ओर बढ़ता एक कदम भी है, जो निरंतर पुस्तकों के जरिए एक उन्नतशील समाज बनाने के लिए प्रयत्नरत है। लेखक, पाठक और प्रकाशक की इस त्रयी को श्रेष्ठतम रूप देने का हम भरसक सहयोग करते रहे हैं और यह पुनीत प्रयास सतत् जारी है व रहेगा। इसलिए जहाँ एक ओर किताबघर प्रकाशन अपने तथा अन्य सभी रचनाकार बंधुओं से सुखद संबंध रखने में सक्षम है तो वहीं पाठकों को पुस्तकों के शब्द-दीप पहुँचाने में भी हम पीछे नहीं रहे और न ही पीछे रहते हैं।
‘पाठक संवाद योजना’ एक ऐसा अनूठा आयोजन है कि पाठकों को हम न केवल पुस्तकों पर विशेष और अधिकतम छूट देते हैं, बल्कि उपहारस्वरूप भी यथासामर्थ्य उनके निजी पुस्तकालय तथा सुरुचिपूर्ण पठन-पाठन को लगातार समृद्धशाली भी करते हैं। आपाधापी और आत्मकेंद्रित स्वार्थों के इस काले समय में भी हम पाठक को उसके द्वारा मनचाही पुस्तक उपलब्ध कराने के लिए निजी प्रयास करते हैं, भले ही किताब अन्य प्रकाशक अथवा अन्यत्र कहीं से जुटानी पड़े। बहुत कम व्यय और श्रम से, श्रेष्ठ पुस्तक पाने वाले हमारे सदस्य वर्षों से लाभान्वित होते आ रहे हैं।
एक बार फिर से बात करें—प्रकाशन की। सभी रचनात्मक विधाओं की श्रेष्ठ साहित्यिक पुस्तकें ही नहीं, ज्ञान-विज्ञान के अन्य क्षेत्रों की उत्कृष्ट पुस्तकें भी आपको हमारी प्रकाशन सूची में मिलेंगी। ‘दस प्रतिनिधि कहानियाँ’ एवं ‘मेरे साक्षात्कार’ सीरीज़ की अब तक प्रकाशित शताधिक पुस्तकें हमारी प्रकाशकीय गतिविधियों के अन्यतम आभूषण हैं। शब्दकोश, रचनावली प्रकाशन आदि अन्य मील के पत्थर हैं। निकट समय में हम कुछ पुस्तकें अंग्रेजी में भी ला रहे हैं, ताकि अहिंदी भाषी पाठक समाज को भी हमारे प्रकाशन का कुछ सहयोग प्राप्त हो सके। यूँ श्रेष्ठ पुस्तकों के हिंदी में अनुवाद हमारी पुस्तक सूची में प्रचुर मात्र में हैं ही।
और यह बात तो न कहने की है, न लिखने की, कि देशभर में आयोजित पुस्तक मेलों में दौड़-दौड़कर हम इसलिए भागीदारी करते हैं, ताकि अपने रचनाकारों, पुस्तक विक्रेताओं, पाठक बंधुओं आदि से रूबरू हो सकें। अपनी प्रकाशन प्रस्तुति उन्हें दिखा सकें तथा उनका सहयोग-समर्थन तथा उनसे विचार-विनिमय का रास्ता खोल सकें। पुस्तक लोकार्पण, समीक्षार्थ तथा मानार्थ पुस्तकें देने आदि का कोई अवसर भी हम हाथ से नहीं जाने देते।
प्रकाशन जगत् से जुड़े सभी क्षेत्रों की प्रेरणा, सहयोग, स्पंदन, स्पर्श—ये सभी कुछ हमारे लिए अनिवार्य हैं। अपेक्षित है तो केवल यही कि हमें आप सबका आशीर्वाद प्राप्त होता रहे और साथ ही हम वह सब भी जानना/सुनना चाहते हैं जो आपके मनो-मस्तिष्क में कहने के लिए शेष है। उसका भी स्वागत सदैव है!
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