अपनी बात जीवन के 85 वसंत पूरे कर लिए। इतने लंबे सफर के बाद इस मोड़ पर खड़े होकर पीछे देखना और उस पर सोचना बहुत रोमांचक होता है। कुछ साफ - सीधी सड़कें थीं , कुछ पथरीली - कंटीली राहें थीं , कुछ टूटी पगडंडियां थीं। कहीं कभी किसी के पैरों के निशान भी नहीं थे , शायद वहां पहले कभी कोई चला भी न था , वहां भी राह बनाई और चलने का साहस किया। फिसला भी , गिरा भी , मूल्य भी चुकाया , पर चलता रहा। नहीं , मैं नहीं चला , मैं कौन होता हूं चलने वाला ऐसे रास्तों पर ? वह प्रेरणा , वह सामर्थ्य - सचमुच प्रभु ने ही दिया था। दसवीं पास करने के बाद 17 वर्ष की आयु में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का प्रचारक बन गया। 1953 में 19 वर्ष की आयु में भारतीय जनसंघ द्वारा डॉ . श्यामाप्रसाद मुखर्जी के नेतृत्व में शुरू कश्मीर सत्याग्रह में 8 मास जेल में रहा। तब से चला तो चलता ही रहा। न कहीं रुका , न कभी थका , न कहीं झुका। व्यस्त ही नहीं , कभी - कभी अस्त - व्यस्त भी हो गया। जीवन...
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