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Showing posts from 2022

Dus Pratinidhi Kahaniyan : Ravindra Kaliya / दस प्रतिनिधि कहानियाँ : रवीन्द्र कालिया

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दस कहानियाँ, चार बातें मैंने और मेरी पीढ़ी के अन्य कथाकारों ने थोक में कहानियाँ नहीं लिखीं। किसी ने पचास तो किसी ने दो कम या दो ज़्यादा। इस मामले में हमारी पीढ़ी के कथाकार बहुत खुशनसीब थे कि इन थोड़ी-सी कहानियों में प्रायः अधिसंख्य कहानियाँ चर्चित रहीं, चालीस बरस बाद आज भी चर्चा में आ जाती हैं। इस दृष्टि से दस प्रतिनिधि कहानियों का चुनाव करना जरा कठिन कार्य था। मैंने अपने मित्रों, अजीज लेखकों, युवा लेखकों और युवा आलोचकों की राय से जो दस कहानियाँ चुनी हैं, वे इस संकलन में शामिल की जा रही हैं। अपनी कहानियों की गुणवत्ता का बखान करना या उनका स्वमूल्यांकन करना यहाँ अभीष्ट नहीं होना चाहिए, क्योंकि यह एक अटपटा और दुविधापूर्ण काम है। आप कितना भी बचाकर यह काम करें, किसी न किसी कोण से हास्यास्पद हो ही जाएगा। यह काम मैं अपने सुधी पाठकों को सौंपता हूँ। वही तय करेंगे कि उन्हें ये कहानियाँ कैसी लगीं । हर कहानी के साथ कथाकार की कोई न कोई स्मृति वाबस्ता रहती है, मैं उसी का खुलासा करूँगा। सबसे पहले मैं अपनी दो कहानियाँ 'नौ साल छोटी पत्नी' और 'सिर्फ एक दिन' की चर्चा करना चाहूँगा। कॉलेज क...

Dus Pratinidhi Kahaniyan : Tejendra Sharma / दस प्रतिनिधि कहानियां: तेजेन्द्र शर्मा

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  आईना पूछता है ज़िंदगी का क्या किया... पहली कहानी 1980 में ‘नवभारत टाइम्स ’ के साहित्यिक परिशिष्ट में प्रकाशित हुई थी। उससे पहले अंग्रेज़ी में साहित्यिक आलोचना की दो पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी थीं। हिंदी में लिखना भी दिवंगत पत्नी इन्दु की वजह से ही शुरू हुआ था। न वह मुंबई में पी.एच.डी. शुरू करती और न मैं हिंदी के उपन्यास पढ़ता और न ही मेरी रुचि हिंदी साहित्य में पैदा होती। इन्दु के माध्यम से मुझे 1975 से 1985 के बीच प्रकाशित उपन्यासों को जानने का अवसर मिला। एक लंबी सूची थी – अमृतलाल नागर, हजारीप्रसाद द्विवेदी, भीष्म साहनी, जगदीश चन्द्र, नरेन्द्र कोहली, मृदुला गर्ग, मन्नू भंडारी, मनोहर श्याम जोशी, हिमांशु जोशी, रामदरश मिश्र एवं शैलेश मटियानी जैसे उपन्यासकारों की रचनाएं पढ़ीं। सोचा कि ऐसा तो मैं भी सहज रूप से लिख लूंगा। मेरे पिता भी उर्दू में उपन्यास, कहानी, कविता, ग़ज़लें लिखा करते थे... उन्हें प्रकाशन का सुख नहीं मिल पाया। यानी लेखन विरासत में मिला था और अब मैं अंग्रेज़ी से हिंदी की ओर बढ़ रहा था। आदमी जब लिखता है तो सपने देखना शुरू कर देता है। उसे महसूस होने लगता है कि वह एक विश...

Nij Path Ka Avichal Panthi / निज पथ का अविचल पंथी!

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  अपनी बात जीवन के 85 वसंत पूरे कर लिए। इतने लंबे सफर के बाद इस मोड़ पर खड़े होकर पीछे देखना और उस पर सोचना बहुत रोमांचक होता है। कुछ साफ - सीधी सड़कें थीं , कुछ पथरीली - कंटीली राहें थीं , कुछ टूटी पगडंडियां थीं। कहीं कभी किसी के पैरों के निशान भी नहीं थे , शायद वहां पहले कभी कोई चला भी न था , वहां भी राह बनाई और चलने का साहस किया। फिसला भी , गिरा भी , मूल्य भी चुकाया , पर चलता रहा। नहीं , मैं नहीं चला , मैं कौन होता हूं चलने वाला ऐसे रास्तों पर ? वह प्रेरणा , वह सामर्थ्य - सचमुच प्रभु ने ही दिया था।   दसवीं पास करने के बाद 17 वर्ष की आयु में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का प्रचारक बन गया। 1953 में 19 वर्ष की आयु में भारतीय जनसंघ द्वारा डॉ . श्यामाप्रसाद मुखर्जी के नेतृत्व में शुरू कश्मीर सत्याग्रह में 8 मास जेल में रहा। तब से चला तो चलता ही रहा। न कहीं रुका , न कभी थका , न कहीं झुका। व्यस्त ही नहीं , कभी - कभी अस्त - व्यस्त भी हो गया। जीवन...