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Dus Pratinidhi Kahaniyan : Ravindra Kaliya / दस प्रतिनिधि कहानियाँ : रवीन्द्र कालिया

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दस कहानियाँ, चार बातें मैंने और मेरी पीढ़ी के अन्य कथाकारों ने थोक में कहानियाँ नहीं लिखीं। किसी ने पचास तो किसी ने दो कम या दो ज़्यादा। इस मामले में हमारी पीढ़ी के कथाकार बहुत खुशनसीब थे कि इन थोड़ी-सी कहानियों में प्रायः अधिसंख्य कहानियाँ चर्चित रहीं, चालीस बरस बाद आज भी चर्चा में आ जाती हैं। इस दृष्टि से दस प्रतिनिधि कहानियों का चुनाव करना जरा कठिन कार्य था। मैंने अपने मित्रों, अजीज लेखकों, युवा लेखकों और युवा आलोचकों की राय से जो दस कहानियाँ चुनी हैं, वे इस संकलन में शामिल की जा रही हैं। अपनी कहानियों की गुणवत्ता का बखान करना या उनका स्वमूल्यांकन करना यहाँ अभीष्ट नहीं होना चाहिए, क्योंकि यह एक अटपटा और दुविधापूर्ण काम है। आप कितना भी बचाकर यह काम करें, किसी न किसी कोण से हास्यास्पद हो ही जाएगा। यह काम मैं अपने सुधी पाठकों को सौंपता हूँ। वही तय करेंगे कि उन्हें ये कहानियाँ कैसी लगीं । हर कहानी के साथ कथाकार की कोई न कोई स्मृति वाबस्ता रहती है, मैं उसी का खुलासा करूँगा। सबसे पहले मैं अपनी दो कहानियाँ 'नौ साल छोटी पत्नी' और 'सिर्फ एक दिन' की चर्चा करना चाहूँगा। कॉलेज क...